Monday, October 3, 2011

परिचय

कभी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से यूँ भी परिचय कराती है
हर गम हुई वास्तु, अपनी सी नज़र आती है

कभी शब्द कम पड़ जाते है बात अपनी कहने को
कभी शब्द समझाने को, बात कम राह जाती है

कभी चलते हुए कदमों से रास्ते खो जाते हैं
कभी बढती हुई राहों से मंजिलें खो जाती हैं

कभी पड़ती हुई धुंध में, भोर कहीं खो जाती है
कभी तपते हुए सूरज में, सांस नहीं आती है

कभी भूख से बिलखती हुई, आत्मा खो जाती है
कभी आत्मा की रोशनी में, कोई भूख नज़र नहीं आती है

"ह्रदय" मांगे कृपा प्रभु आपकी
जो अनर्थ से अर्थ बनाती है
गहरा जाने पर रात घनी
भोर की उम्मीद जगाती है

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