Tuesday, October 4, 2011

भूकंप

धरती क्रौंधी मंडल क्रौंधा
रोम रोम से जलधारे बहे
मौत ने यूँ तांडव नाचा
वज्रों के दिल दहल उठे

दहला न मन उन मानव का 
सौदागरों के दिल थे बड़े
रोटी कपडा दान का बेचा 
बहु बेटी के किये बाज़ारखड़े 

ममता बेचीं माँ को बेचा 
कई कोखों को शर्मसार किया 
रोटी, बोटी से महँगी बिकती 
रोटी ने मानुष पशु किया

उठ यौवन, उठ जतन करें कुछ 
जननी ने "ह्रदय" पुकारा है 
मन कर्म वचन से इंसां हो ले
धरती ने किया इशारा है


  

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