धरती क्रौंधी मंडल क्रौंधा
रोम रोम से जलधारे बहे
मौत ने यूँ तांडव नाचा
वज्रों के दिल दहल उठे
दहला न मन उन मानव का
सौदागरों के दिल थे बड़े
रोटी कपडा दान का बेचा
बहु बेटी के किये बाज़ारखड़े
ममता बेचीं माँ को बेचा
कई कोखों को शर्मसार किया
रोटी, बोटी से महँगी बिकती
रोटी ने मानुष पशु किया
उठ यौवन, उठ जतन करें कुछ
जननी ने "ह्रदय" पुकारा है
मन कर्म वचन से इंसां हो ले
धरती ने किया इशारा है
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