Monday, October 3, 2011

सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ

मेहमान जिंदगी के अरमान सजा रहा हूँ
सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ

इक पल का राजा हूँ, भिखारी मै सांसों का
इक पल मै भिक्षु हूँ, धनवान ज़िन्दगी का
इस अनमोल जिंदगी की कीमत लगा रहा हूँ
सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ

ले रहा हूँ सांसें अहंकार को संजोए
खो रहा हूँ पल, आस बरसों की संजोए
इक मृग-तृष्णा की खातिर, दांव जीवन लगा रहा हूँ
सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ

देखता हूँ जब जमीं, है सच जो आसमान का
है वृक्ष गगन-चुम्भी भी, पौधा इसी जमीं का
फिर भी आसमान पर, महल बना रहा हूँ
सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ

गम है इसी जीवन का, ख़ुशी ना साथ जाएगी
इक कला है मिट्टी की, मिट्टी में ही मिल जाएगी
"ह्रदय" मिट्टी में रंग भरने की कोशिश कर रहा हूँ
सागर के तट बैठा लकीरें लगा रहा हूँ













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