Monday, October 3, 2011

रोटी का टुकड़ा

इक रोटी का टुकड़ा क्या क्या खेल खिलाए
इक जागे रातों को इक को नींद आए

इक के पीछे भागे टुकड़ा, फिर भी खा पाए
इक भागे टुकड़े के पीछे, फिर भी पा पाए

इक की थाली भरे है टुकड़ा, पर मन खाली रह जाए
इक की थाली तरसे टुकड़े को, तन खली रह जाए

"ह्रदय" यह झगडा टुकड़े का, जग से ही मिट जाए
इस टुकड़े के, टुकड़े कर मानव, बाँट बाँट कर खा

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