ख्वईशोँ पे ख्वईशें कुछ कह रही हैं ऐसे
सदियों का कोई बंजर, महका हो आज जैसे
हर पत्थर भी बोलता है
बन मूर्त डोलता है
बहती हुई धरा को
कहा गंग धरा जैसे
हैं शब्द निकलते ऐसे
हों आराधना के जैसे
किसी बुझती हुई राख का
तिलक किया हो जैसे
मन कोयल सा बोलता है
नई दुल्हन सा डोलता है
गिरती हुई ओस कों
मोती किया हो जैसे
"ह्रदय" दीया मैं अंधेरों में बन पाऊं
मकसद मिला है ऐसे
डोलती सी लहरों कों
साहिल मिला हो जैसे
सदियों का कोई बंजर, महका हो आज जैसे
हर पत्थर भी बोलता है
बन मूर्त डोलता है
बहती हुई धरा को
कहा गंग धरा जैसे
हैं शब्द निकलते ऐसे
हों आराधना के जैसे
किसी बुझती हुई राख का
तिलक किया हो जैसे
मन कोयल सा बोलता है
नई दुल्हन सा डोलता है
गिरती हुई ओस कों
मोती किया हो जैसे
"ह्रदय" दीया मैं अंधेरों में बन पाऊं
मकसद मिला है ऐसे
डोलती सी लहरों कों
साहिल मिला हो जैसे
No comments:
Post a Comment