Monday, October 3, 2011

मकसद

मन महके आज मेरा
आज वोह बात हो गयी
पथ बन पाऊं औरों का
शुरुआत हो गयी

हवा बहने को बह रही थी
खुशगवार थी खुद को
देने को जीवन किसी को
किसी की सांस हो गयी

छोट्टा हुआ है पैसा
छोटी हर आस हो गयी
सागर तो था पहले भी

बूंदों की प्यास हो गयी

उपवन भी है वही
पतझड़ कहाँ गयी
खड़े ठूंठ के खिलने की
अब आस हो गयी

मन रोने को कह रहा
कहीं खोने को कर रहा
"ह्रदय" बहते हुए भावों की

अश्रु धार हो गयी



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