धन की यूँ चक्की चली
जीवन ही सारा पिस्ता रहा
अन्न की खात्तिर धन को लपका
अन्न ही जीवन को तरसता रहा
सारी खुशियाँ बीमारी हो गयी
गम तो अब छूता नहीं
पंचों ने यूँ दास बनाया
देव मानुष दीखता नहीं
अहम् खोया, अस्मत खोई
धनवान पैगम्बर हो गए
राष्ट्र धरा और जनहित
सब के व्यापारी हो गए
"ह्रदय" व्यापार अब यह धन का
किसको वास्तु बनाएगा
बेचीं धरा, माँ, बहिन - बेटी
धन किसकी खात्तिर चाहेगा
जीवन ही सारा पिस्ता रहा
अन्न की खात्तिर धन को लपका
अन्न ही जीवन को तरसता रहा
सारी खुशियाँ बीमारी हो गयी
गम तो अब छूता नहीं
पंचों ने यूँ दास बनाया
देव मानुष दीखता नहीं
अहम् खोया, अस्मत खोई
धनवान पैगम्बर हो गए
राष्ट्र धरा और जनहित
सब के व्यापारी हो गए
"ह्रदय" व्यापार अब यह धन का
किसको वास्तु बनाएगा
बेचीं धरा, माँ, बहिन - बेटी
धन किसकी खात्तिर चाहेगा
No comments:
Post a Comment