Saturday, September 4, 2010

गुरु - शिक्षक

सपने तो निगाहें देखती थी मेरी
रातों को कोई और जगता था
मेरे बढने की ख्वाईश तो कइयोँ को थी
मेरे बढने में पसीना उनका ही था

माँ बाप के सपनों की समझ थी मुझे
पर उनके सपनों का आभास ना था
वो सख्त जुबान, दिल था नरम
कभी छोड़ता विश्वास और प्रयास था

मुझे ज्ञान, समझ, विश्वास दिया
मुझे जीने का आधार दिया
पग पग हैं बढते कदम मेरे
मुझे बल और चलने का मार्ग दिया

कलम छड़ी पहचान "गुरु "की
हाथों में माँ सा प्यार लिए
"ह्रदय" सफलता उनकी ही अमान्नत
वो दिलों दिमाग बेमिसाल लिए

जन्म का ऋण सेवा से उतारूं
तुम्हारा ऋण "गुरु" कहा जाये
"ह्रदय" तरसता उनके चरनन को
जिन्हें सही वक़्त समझ पाए





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