पेड़ के नीचे पड़ी फोटो भगवान् की, कह रही थी कहानी अपमान की
विचारों का अन्तर में अभाव रहा होगा , शर्मिंदा करती कृत्य पर इसान की
जिन हाथों ने पूजा उन्ही ने तिरस्कारा बेवक्त बेसहारा किया हमसे किनारा
मन्नतें मांगीं, घी दीपक जलाया, हर गुर्ब्बत में अपनी था हमको मनाया
तस्वीर थी नाशुक्री की, लालच की पहचान की, शर्मिंदा करती कृत्य पर इंसान की
प्रौड़ में आया ,यह बचपन से यौवन, तन हुआ वृद्ध अब करता है रोवन
कई पेड़ खाली, भटके है माली, तरसे है बूंदों को सावन का धोवन
"ह्रदय" छत है यह किसी ऊँचे मकान की, कह रही थी कहानी अपमान की
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