Tuesday, November 22, 2011

रजत जयंती


  आ नयनों में नीर हो गए, मन के मेरे भाव सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

जीवन है बस संग रहने में, संग-संग हंसने- रोने में l
बचपन के पल अनमोल हैं सारे, सपनों में, जगने-सोने में ll
इक ममता, इक उपवन, इक पौधे के फूल सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

अंगुली पकडे चलता था बचपन, संग मैया बहिन के रहता था l
क्यों बन गयी गहना दूजे के घर का, मैया से अपनी कहता था ll
नीर बहता अब भी पल-पल, याद जब आते पल वो सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

संस्कार पिरोती, मान संजोती, दो कुल का अभिमान भई l
साथी मिला जीवन का ऐसा, हर ख्वाईश मन की पूरी हुई ll
बचपन भी बड़ा हो गया, रिश्ते निभाए हंस-हंस सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

नए आँगन में, नए रिश्तों ने, सबने यूँ अपनाया l
भूली अंगना अपने बाबा का, यूँ मान -प्रेम सब पाया ll
निभाती इनको, अनमोल जो रिश्ते, निभाती मैया के सबक सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

गगन-धरा जब एक हुई, दो अंकुर फूटे नयी बगिया में l
खेल-खिलौने ये बन गए दोनों, उनके सपने बस अखियों में ll
समय दौड़ता आगे-पीछे, सदृश्य हो गए पल वो सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

इक राखी और हैं तीन कलाई, माँ-बाबा की लाडो के तीन हैं भाई l
तुझ बिन इनका अधूरा जीवन, बिन तेरे अपनों के कोई भलाई ll
तुम दोनों से सब आशा-निराशा, चलते जीवन के श्वास सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

सखी है बहना तू मैया की, है तू बाबा का साहस और प्यार l
हम फैले चाहे धरती-गगन पर, तेरा रहेगा पूरा अधिकार ll
तुम सब हमको जान से प्यारे, प्यारे प्यारऔर तिरस्कार सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

वक़्त भी बदला हालत भी बदले, सदा रहे एक से सब आयाम नहीं 
हर कसौटी जीवन की पार करी तुम, चाहे पाए कोई नाम हैं नहीं
आज बधाई दे जग तुमको, तुम्हें पाते अपने जीवन में सभी 
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

बचपन खोजे, वक़्त संजोए, मन के भाव अधीर हुए 
जीवन बिता सब धुप-छाँव में,तुम रंगों-खुशबू के उपवन हुए 
रजत मनाते इस पावन रिश्ते की,गदगद हुए मन आज सभी 
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll



 'हृदय' बलैयां ले पल-पल मैया,भरे दामन जीवन की ख़ुशी सभी l
तुम दोनों, दोनों रहो संग-संग, जीवन में फबते तब रंग सभी ll
इस रिश्ते का मनाएं शतक हम आधा, देखें सपना हम भाई सभी l
श्री कृष्ण कृपा या श्री कृष्ण कहूँ मैं, जीवन के मेरे ये अर्थ सभी ll

Thursday, November 10, 2011

मैं बचपन हूँ...

मैं बचपन हूँ...
     मैं बचपन हूँ...
         मैं बचपन हूँ...
यह भाव बड़ा ही निराला है 

परिभाषा यह हर भाषा की,
जीवन में, जीवन को, जीवन से भरने वाला है 

ऊँचा है हर ऊँचाई से, 
गहराई में, गहराई को, गहराई से भरने वाला है

जीवन्त करता हर पल को यह, 
सरलता में, सरलता को, सरलता से भरने वाला है

सबसे बड़ा यह अधिकारों में, 
मोहब्बत  में, मोहब्बत को, मोहब्बत से निभाने वाला है

दृश्य यह मन का उपवन करता, 
यादों में, यादों को, यादों से भरने वाला है

"हृदय" का यह प्रणाम प्रभु को, 
खुद में, खुद को, खुद से मिलाने वाला है

Thursday, November 3, 2011

क्या आप मेरी मदद करेंगे ?

हैलो ! आप कैसे हैं ? 

मैंने इधर उधर देखा और फिर चलने लगा l  

मुझे फिर से आवाज़ आई, "मैं आप ही से बात कर रहा हूँ l"

मुझे लगा कि कोई सफ़ेद दाढ़ी , झुकी हुई कमर और जर्जर शारीर वाला वृद्ध मुझे पुकार रहा है l

मैंने उनसे पूछा, "क्या मैं आपको जनता हूँ?"

उन्होंने उत्तर दिया, "जी हैं पर आप शायद मुझे भूल गए है l मैं तो सभी को जानता हूँ l सब मुझे आपके इस समाज कि नींव मानते है l इस समाज का भविष्य मानते हैं पर मैं भविष्य से ज्यादा वर्तमान हूँ, समाज की कसौटी हूँ l मैं खुद में पूर्ण समाज हूँ

आज मै जैसा दिखता हूँ, सदैव ऐसा नहीं था वरन मेरा स्वरुप, व्यवहार और भूमिका बड़े-बड़े खानदानों और उनके संस्कारों की पहचान थी l मुझे सभी का स्नेह, आदर और देख-रेख मिलती थी l किसी युग में स्वयं दशरथ जैसे राजा मेरे पीछे दौड़ते थे, तो इस युग में जीजाबाई जैसी माँ ने मुझे पाला-परोसा l श्री कृष्ण रूप में नन्द गाँव की तो मैं जीवन-श्वास था l वह तो मेरा क्रीड़ास्थल था

मैं बच्चपन हूँ

वही बच्चपन जो निर्मलता और सत्यता का पर्याय था l वह था मिट्टी का ढेर जिस पर कुम्हार सारी उम्र मेहनत करता था l मेहनत तो आज भी करता है परन्तु उसका तरीका बदल गया है l पहले वह भावपूर्ण हृदय का कलाकार था l वह हृदय से कोमल एवं डंडे की सख्ती भरे मज़बूत हाथ लिए अपने फन का माहिर था और यही उसका स्वरुप भी था l उसकी दूरदर्शिता और दिया हुआ स्वरुप मुझे हमेशा गौरवान्वित करता था l वह सुविचारों और संस्कारों से सदैव मुझे संवारता रहता था

मगर आज का कुम्हार तो कहीं असंमंजस में फंसा रहता है l उसे मेरा स्वरुप समझ ही नहीं आ रहा है l वह मुझे राह नहीं दिखा पा रहा है l आज उसी कि दुविधा का परिणाम मैं भोग रहा हूँ

मै खेल नहीं पता हूँ l केवल किताबों में घुट कर रह गया हूँ मैं बूढ़ा नज़र आने लगा हूँ l मेरी स्फूर्ति ख़त्म हो रही है l मुझे टी.वी. हो गया है l मैं अत्यधिक कम्प्यूटर के रोग से ग्रस्त हूँ l मुझे दमा भी होने लगा है क्योंकि स्वच्छ एवं निर्मल सांस तो मिलनी बंद होती जा रही है l सारे वातावरण में आडम्बर, दिखावे और अंधी प्रतिस्प्रधा का कैंसर हुआ है और मुझे रिश्तों और विश्वास की दवा भी नहीं मिल रही है

परन्तु इस बदलते हुए माहौल ने मुझे किफायती बना दिया है l पहले मैं बहुत नटखट था l शैतानियाँ तो मेरी परिभाषा थी l अब मैं समझदार हो गया हूँ l मुझे पैसे की समझ हो गयी है l मतलबपरस्ती, अपना पराया इत्यादि मेरे शबदकोश की शान बनने लगे है l इनसे मेरा केवल परिचय ही नहीं हुआ बल्कि अब तो मेरा अन्तरंग सम्बन्ध होने लगा है l अब मैं कोरा सामाजिक हो गया हूँ l  

पर मैं तो मैं रहा ही नहीं ना

मैं कोट-पैंट मैं बहुत फ़ब्ता हूँ l अब मुझे टाई बांधनी भी आती है l मेरे ब्वाय और गर्ल फ्रैंड भी हैं अब मुझे नशे का स्वाद भी पता है l मुझे बाज़ार की चींजे बहुत अच्छी लगती हैं l मैं अपने साथियों के साथ जन्मदिन रेस्टोरेंट में मनाता हूँ और मुझे बिल व टिप देने मैं बड़ा मज़ा आता है

लेकिन मैं खुद को कतई भी ढूंढ़ नहीं पा रहा हूँ l मैं खुद ही पहचान नहीं पा रहा हूँ l  कभी-कभार गिल्ली-डंडे, कंचे, छुप्पन-छुपाई जैसे खेलों को तरस जाता हूँ l मेरे त्यौहार बदल गए हैं l मेरे खेल और उनके तरीके बदल गए हैं l मेरे स्वाद अब पहले जैसे रहे ही नहीं l मैं स्वस्थ दिख कर भी बीमार रहने लगा हूँ l  

मैं आपको अपनी स्थिति से इसलिए अवगत कराने आया हूँ क्योंकि आपने मुझे पहले देखा हैं l आप मेरी सही पहचान जानते हैं l आपकी यादों में आज भी मेरा अनुपम स्थान हैं l मैं फिर से स्वस्थ जीवन चाहता हूँ 

निराश-हताश सा मैं जंगल में भी गया था, वहां मेरे भाई जानवरों में अभी भी अपना पुराना स्वरुप कायम रखे हुए हैं l भगवान् द्वारा मनुष्य जन्म जो मुझे वरदान सा लगा था, वह इतनी जल्दी अभिशाप बन जायेगा मुझे ऐसी आशा नहीं थी l मैं आपसे अपने जीवन की रक्षा के लिए मदद मांगने आया हूँ

क्या आप मेरी मदद करेंगे ?