Thursday, September 5, 2013

बूंद

गिरी बूंद आकाश से
ले गयी नदी बहाए 
संग पाला प्रेम-चुनौती के 
'हृदय' सागर दिया बनाए 

 कभी सूरज के संग मोती भई 
कभी चन्दा संग चाँदनी छाई
हर करवट संग बढती गयी 
बन सागर मैं हर्शायी 
मैं बूंद नमूं उस गुरु को, जो नदिया रूप हो आये 
संग पाला प्रेम-चुनौती के,'हृदय' सागर दिया बनाए

1 comment:

  1. Amazing sir... This one is so deep... Literally I felt like The Boond...

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