नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।
जननी भी तू, सहचरी भी तू,
तू बहिन और बेटी हमारी ।।
बदलते हुए परिवेश में तूने, सदा हमको- खुदको बदला ।
स्नेह, त्याग और ममता - दया तू, ज्योति रूप तू सबला ।।
घर-आँगन की तू ही आधारा,
पहचान समाज की सारी ।
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।
बचपन यौवन प्रौढ बुढ़ापा, तू सबका परिचय बन जाती है ।
पीड़ा-हर्ष की सिरहन तू ही, तू ही अंतर समझाती है ।।
कर्णों के सरगम हैं तुमसे ,
पहचान श्रृंगार की सारी ।
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।
धरती भी तू है, प्रकृति तू है, कसौटी व्यवहार की तू है ।
मुस्कान भी तू, अश्रु भी तू ही, गरिमा समाज की तू है ।।
राह पुरुष के पौरुष की तू,
बिन तेरे 'हृदय' ना संसारी ।
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।
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