Tuesday, November 27, 2012

मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी मेरी हकीकत से अलग चल रही है 
हालात की यह किश्ती, समय की धारा में बढ रही है 

कभी बढ़ता हुआ वेग हिचकोलों संग डराता है 
कभी हौंसला चट्टानों से टकराता है 
है गहराई का पता नहीं चलता 
हर किनारा अजनबी हो जाता है 
अंधेरों में भी बढती रही है, 
सूर्य की किरणों संग चल रही है 
हालात की यह किश्ती, समय की धारा में बढ रही है 

मेरी हकीकत मेरे सपनों में पलती है 
कर्मों की खेती में बीज सी फलती है 
आशा कोशिशों को संग में रखती है 
उत्साह और लगन के रंगों में रंगती है 
नयन, अश्रु और मन के सहारे 
मंजिलों पर टीकी रही है 
हालात की यह किश्ती, समय की धारा में बढ रही है

सबक पिछले साथ सारे 
'हृदय' अनुभव नए हो रहे हैं 
सजगता, संयम, प्रकृति 
मन के विश्वास हो रहे हैं 
ज़िन्दगी आज कल का परिचय 
कल का परिचय लिख रही है 
हालात की यह किश्ती, समय की धारा में बढ रही है


Monday, November 5, 2012

नतमस्तक हूँ तुमको नारी

नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी। 
जननी भी तू, सहचरी भी तू,
तू बहिन और बेटी हमारी ।।

बदलते हुए परिवेश में तूने, सदा हमको- खुदको बदला ।
स्नेह, त्याग और ममता - दया तू, ज्योति रूप तू सबला ।।
घर-आँगन की तू ही आधारा, 
पहचान समाज की सारी ।
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।
 
बचपन यौवन प्रौढ बुढ़ापा, तू  सबका परिचय बन जाती है ।
पीड़ा-हर्ष की सिरहन तू ही, तू ही अंतर समझाती है ।।
 कर्णों के सरगम हैं तुमसे , 
पहचान श्रृंगार की सारी ।
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।
 
धरती भी तू है, प्रकृति तू है, कसौटी व्यवहार की तू है  ।
मुस्कान भी तू, अश्रु भी तू ही, गरिमा समाज की तू है ।।
राह पुरुष के पौरुष की तू, 
बिन तेरे 'हृदय' ना संसारी । 
नतमस्तक हूँ तुमको शक्ति ,
नतमस्तक हूँ तुमको नारी।।