टूटा अँधेरा भोर में, पंछियोँ के शोर में
चल करें स्वागत सूर्य का, बढ़े सपनों की ओर में
हो गया दूर तम अब, सब दृश्य उज्जवल हो गया
महकती हवा संदेश लाई, मिल गया इक दिवस नया
माँ सरस्वती की वंदना को, नन्हें कदम बढ़नें लगे
आने को है इक युग नया, यह अमृत कानों में भरनें लगे
"ह्रदय" अब अन्तर तक जग ले, रोम रोम में रोमांच भर ले
अबका सवेरा कुछ ख़ास होगा, हर श्वास में विश्वास भर ले.
Monday, August 2, 2010
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